Wednesday, September 16, 2015
Sunday, September 13, 2015
Monday, September 7, 2015
भारत-पाक : युद्ध से डरना कैसा ? #IndoPak #IndiaPakistan
पाकिस्तान की विदेश नीति का मूल मंत्र है
दुनिया, खासकर भारत को लगातार लड़ाई का भय दिखाना. एक तरफ दुनिया की बड़ी ताकतों को
आतंकवाद का डर दिखाकर पाकिस्तान के हुक्मरान उनसे आर्थिक मदद लेते हैं और दूसरी
तरफ भारत को न्यूक्लियर युद्ध की धौंस देकर सीमापार से आतंकवाद फैलाते है. भारत के
खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देना और दबाव बढ़ने पर परमाणु युद्ध की धमकी देना पाकिस्तान
की ऐसी पालिसी है जिसका तोड़ निकालना हिन्दुस्तान की सुरक्षा के लिए बेहद ज़रूरी है. एक बात साफ़ है कि जो युद्ध से
डरते हैं उन्हें भी युद्ध का सामना करना ही पड़ता है. ताकत के बल पर स्थापित मौजूदा
अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में स्थायी शांति के लिए युद्ध के डर को जीतना ज़रूरी है.
पाकिस्तान की सीमापार आतंकवाद की नीति से
निपटने के लिए भारत ‘कभी नरम और कभी गरम’ की पालिसी अपनाता रहा है. देश के
बुद्धिजीवियों के एक वर्ग ने पिछले कोई तीन दशक में पाकिस्तान के उग्र तेवरों का
जवाब “पीपुल टू पीपुल कोंटेक्ट” यानि दोनों देशों की जनता के बीच संपर्क बढ़ाने से
दिया है. इसी के तहत “ अमन की आशा” और “ट्रैक 2” जैसे नुस्खे अमल में लाए गए हैं.
इनके पीछे की मंशा रही है कि पाकिस्तान की सिविल सोसायटी का दबाव पाकिस्तान के
हुक्मरानों पर पड़ेगा और वे अपनी नीतिओं में बदल करेंगे. मगर क्या ये उम्मीद्द
वास्तविक है? अभी तक के रिकार्ड से तो इसका उल्टा ही लगता है. कारगिल की लड़ाई इसका
जीता जागता उदाहरण है. उस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी की भलमनसाहत और “अमन
की उम्मीद” जैसे नेक ख्यालों के बीच पाकिस्तान की सेना ने कारगिल की साज़िश रची थी.
किसी देश की विदेश ओर रक्षा नीतियां शान्ति की उम्मीद और उससे पैदा हुई कोमल
भावनाओँ के आधार पर निर्धारित नहीं
होतीं. ये वास्तविकता की जमीन पर जिन्दगी कि कड़वी सच्चाईयों के धरातल पर बनाई जाती
हैं. जो मुल्क इस सच्चाई से मुंह मोड़ता है
उसे इतिहास माफ नहीं करता. पंचशील का सिद्धान्त 1962 कि लड़ाई को नहीं रोक सका था
और न ही वाजपेई की लाहौर यात्रा कारगिल के युद्ध को रोक पाई थी. यह एक कटु सत्य है
.
इसलिए युद्ध रोकने का उपाय शांति की
कामना नहीं बल्कि युद्ध कि सतत तैयारी और शक्ति की पूजा है. जो देश लगातार युद्ध
के लिए तैयार रहता है शांति भी उसी को प्राप्त
होती है . भारत–पाक सम्बंधो में तो ये बात और अधिक गंभीरता से लागू होती है. पिछले
कुछ हफ़्तों में पाकिस्तान से युद्ध कि
धमकियां
लगातार आ रहीं हैं .पाकिस्तान सरकार और सेना ने बार बार कहा है कि युद्ध की
स्तिथि में वह परमाणु हथियारोंका इस्तेमाल भी कर सकता है . एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान “लो
इंटेंसिटी नयूक्लेअर डिवाइस” यानि छोटे छोटे परमाणु बम बना रहा है. अब इनका डर
दिखाकर पाकिस्तान बार बार चुनौती दे रहा है कि भारत ने उसके खिलाफ कोई कदम उठाया
तो वह परमाणु हथियारों का भी इस्तेमाल करने से नहीं चूकेगा. मतलब ये कि पाकिस्तान
की शह और मदद से और उसकी ज़मीन सेआतंकवादी यहाँ कत्लोगारत करते रहें. हिन्दुस्तान
अगर इनका इलाज़ करने की कोशिश करे तो परमाणु युद्ध की भभकी.
इस परमाणु धमकी का इलाज ज़रूरी है. नहीं तो
कसाब, नवीद और सज्जाद जैसे आतंकवादी हमारे यहाँ खूनी खेल खेलते रहेंगे. उनके आका
पाकिस्तान में बैठकर खुले आम भारत के खिलाफ फौज और आई एस आई की मदद से ऐसे नए नए
आतंकी तैयार करके कभी मुंबई पर हमले करेंगे, कभी गुरदासपुर में लोगों को मारेंगे,
कभी कश्मीर में कोहराम मचाएंगे तो कभी हमारी संसद को निशाना बनायेंगे. ये सही है
कि भारत ने नीति के तहत यह घोषित किया है कि वह “परमाणु हथियारों का पहला इस्तेमाल
“नहीं करेगा. गौरतलब है कि पाकिस्तान नें अभी तक ऐसा नहीं कहा है. वह ऐसा घोषित
क्र भी दे तो क्या गारन्टी है कि वह उसका पालन करेगा ? पर क्या हमें इससे डर जाना
चाहिए?
पाकिस्तान की परमाणु युद्ध कि धमकी को हम
उसे “आतंकवाद फैलाने के लाइसेंस“ के तौर पर इस्तेमाल नहीं करने दे सकते. इसका उपाय
क्या है ? क्या फिर हम “अमन की आशा” जैसे नारों का सहारा लें ? या फिर सोंचें कि
कभी न कभी तो पाकिस्तान के हुक्मरानों खासकर सेना और आई एस आई को अक्ल आयेगी और वह
अपनी नीतियों में बदलाव करेगा. उसके आचरण से तो ऐसा लगता नहीं है. तो फिर भारत को
ही उसकी अक्ल को ठिकाने लगाने का इंतजाम करना पड़ेगा.
इसका एक ही उपाय है वो ये कि पाकिस्तान
को बता देना कि भारत किसी भी तरह के युद्ध के लिए तैयार है. नयूक्लेअर युद्ध की
धमकी से डरना नहीं बल्कि पाकिस्तान को सीधे सीधे बताना कि अगर ऐसा हुआ तो भारत को
जो नुकसान होगा सो होगा, मगर पाकिस्तान तो पूरी तरह से नष्ट हो जायेगा. भारत के
पास ऐसी क्षमता और योग्यता दोनों ही हैं. यह पाकिस्तान की सरकार, फौज, आई एस आई और
वहां से चलाए जा रहे आतंकवादी गुटों को यकीन दिलाना जरुरी है. जिस तरह से म्यांमार
के जंगलों में जाकर भारत ने कारवाई की वैसा पकिस्तान मैं भी हो सकता है इसका
प्रदर्शन ज़रूरी है. पाकिस्तान के नुक्लिअर ब्लैकमेल का जवाब ज़रूरी है.
भारत पाक के बीच शांति का आधार भारत की
ताकत, लड़ाई लड़ने कि सामर्थ्य, इच्छा शक्ति और उसके हौसले पर निर्भर करती है. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह
दिनकर ने शायद ऐसी हो परिस्थितियों के लिए लिखा था.
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल
हो,
उसको क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत, सरल
हो.
#IndiaPakistan
उमेश उपाध्याय
6 सितम्बर 2015
Subscribe to:
Posts (Atom)