Thursday, May 24, 2018

कर्नाटक : कैसे चलेगी ये बेमेल सरकार


हलवा कितना भी स्वादिष्ट हो, अगर सीधे कढ़ाई से उतारकर खाएंगे तो मुंह जलेगा ही भाजपा ने अगर कर्नाटक में सब्र किया होता तो उसका मुंह नहीं जलता सिर्फ मुंह ही नहीं जला, अब तो ऐसा लगता है कि पूरा भगोना ही विपक्ष लेकर भाग चुका है लेकिन ये मानना गलती होगी कि कुमारस्वामी के मुख़्यमंत्री बनाते ही कर्नाटक का सियासी ड्रामा ख़त्म हो गया है कर्नाटक का नया गठजोड़ अस्वाभाविक है इसलिए कर्नाटक के ड्रामे का आखिरी सीन अभी लिखा जाना बाकी है

असल में खंडित जनादेश की स्थिति में ऐसा होना तकरीबन लाजिमी ही है जो भी सरकार जोड़तोड़ से बनती है अस्थिरता उसकी जड़ में रहती ही है कांग्रेस और जेडी एस के राजनीतिक मकसद और लक्ष्य अलग अलग हैं इसलिए जेडी-एस और कांग्रेस का गठबंधन भी कोई खुदा का बनाया पवित्र सैद्धांतिक गठजोड़ नहीं है अगर भाजपा सात विधायको को तोड़कर बहुमत साबित करना चाहती थी तो ये गठजोड़ भी  उतना ही मौकापरस्त है

इस खंडित जनादेश में कर्नाटक की जनता की एक राय तो  बिल्कुल स्पष्ट थी  कि वह सिद्धारमैया की कांग्रेस सरकार से निजात पाना चाहती थी इसलिए कांग्रेस पार्टी को बस  70 सीटें मिलीं जेडी-एस तो 37 सीटें लेकर तीसरे नंबर  की पार्टी बनी अब सत्ता के लालच का चमत्कार देखिए तीसरे नंबर की पार्टी जेडी-एस से कुमारस्वामी मुख्यमंत्री  बने हैं उनका समर्थन कर रही हैं निर्णायक रूप से सत्ता से हटाई गई कांग्रेस चुनावों में अव्वल रही भाजपा अब विपक्ष में बैठने को मजबूर है

कांग्रेस और जेडी-एस एक दूसरे के खिलाफ लड़े थे उतना ही नहीं सिद्धारमैया और देवगौड़ा एक दूसरे को फूटी आखों नहीं सुझते उनकी आपसी खुन्नस जग जाहिर है परन्तु आज सत्ता के खेल में दोनों को एक ही टीम का हिस्सा बनना पड़ा हैं जैसा मैंने ऊपर कहा, ये सरकार चलाना इतना आसान नहीं होगा  कांग्रेस गठबंधन की बड़ी  पार्टी है पर मुख्यमंत्री उनका नहीं है अभी तक वह सत्ता में भी थी इसलिए मुख्यमंत्री कुमारस्वामी की राजनैतिक हैसियत सरकार में कितनी मजबूत होगी इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है जब भी किसी सरकार में नेता के पास अपनी संख्या पूरी  नहीं होती है तो वो सरकार मुश्किल में रहती ही है गठबंधन सरकारों का क्या हश्र होता है हम केन्द्र और कर्नाटक सहित कई राज्यों में देख चुके हैं

एक तरह से इसकी जिम्मेदारी भाजपा पर ही बनती है येदुरप्पा को शपथ लेने में इतनी जल्दी नहीं करनी चाहिये थी उन्हेँ  न्योता देने से पहले राज्यपाल को सोच विचार करना चाहिये था राज्यपाल का संवैधानिक दायित्व है कि वे जहां तक हो राज्य में  स्थायी और टिकाऊ सरकार को नियुक्त करें कर्नाटक में राज्यपाल ने थोड़ी जल्दबाजी की इसी कारण सत्ता का हलवा एक दम गटक जाने की जल्दी में  येदुरप्पा अपना और अपनी पार्टी का मुहँ बुरी तरह जला बैठे

उमेश उपाध्याय

24 मई 2018